Sunday, March 15, 2020

गोरक्षनाथ

गोरक्षनाथ  


परिचय - 
गोरखनाथ या गोरक्षनाथ जी महाराज 11वीं से 12वीं शताब्दी के नाथ योगी थे। गुरू गोरखनाथ जी ने पूरे भारत का भ्रमण किया और अनेकों ग्रन्थों की रचना की। गोरखनाथ जी का मन्दिर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर नगर में स्थित है। गोरखनाथ के नाम पर इस जिले का नाम गोरखपुर पड़ा है। गुरू गोरखनाथा जी के नाम से ही नेपाल के गोरखाओं ने नाम पाया। नेपाल में एक जिला है- गोरखा, उस जिले का नाम भी इन्हीं के नाम से पड़ा। माना जाता है कि गुरू गोरखनाथ सबसे पहले यहीं दिखे थे। गोरखा जिला में एक गुफा है जहाँ गोरखनाथ का पग चिन्ह है और उनकी एक मूर्ति भी है। यहाँ हर साल वैशाख पूर्णिमा को एक उत्सव मनाया जाता है जिसे रोट महोत्सव कहते हैं और यहाँ मेला भी लगता है।
डाॅ0 बड़थ्वाल की खोज में निम्नलिखित 40 पुस्तकों का पता चला था, जिन्हें गोरखनाथ रचित बताया जाता है। डाॅ0 बड़थ्वाल ने बहुत छानबीन के बाद इनमें प्रथम 14 ग्रन्थों को निसंदिग्ध रूप से प्राचीन माना, क्योंकि इनका उल्लेख प्रायः सभी प्रतियों में मिला। तेरहवीं पुस्तक ”ग्यान चैंतीसा“ समय पर मिल सकने के कारण उनके द्वारा संपादित संग्रह में नहीं आ सकी, परन्तु बाकी 13 को गोरखनाथ की रचनाएँ समझकर उस संग्रह में उन्होंने प्रकाशित कर दिया। पुस्तकें ये हैं-
1. सबदी 2. पद 3. शिष्यादर्शन 4. प्राण सांकली 5. नरवै बोध 6. आत्मबोध 7. अभय यात्रा जोग 8. पंद्रह तिथि 9. सप्तवार 10. मछिन्द्र गोरख बोध 11. रोमावली 12. ग्यान तिलक 13. ग्यान चैंतीसा 14. पंचमात्रा 15. गोरखगणेश गोष्ठी 16. गोरखदत्त गोष्ठी (ग्यानद दीपबोध) 17. महादेव गोरखगुष्टि 18. शिष्ट पुराण 19. दयाबोध 20. जाति भौंरावली (छंद गोरख) 21. नवग्रह 22. नवरात्र 23. अष्टपारछया 24. रहरास 25. ग्यान माला 26. आत्मबोध-2 27. व्रत 28. निरंजन पुराण 29. गोरख वचन 30. इंद्री देवता 31. मूलगर्भावली 32. खाणीवाणी 33. गोरखसत 34. अष्टमुद्रा 35. चैबीस सिध 36. षडक्षरी 37. पंच अग्नि 38. अष्ट चक्र 39. अवलि सिलूक 40. काफिर बोध।
मत्स्येन्द्रनाथ और गोरखनाथ के समय के बारे में इस देश में अनेक विद्वानों ने अनेक प्रकार की बातें कही हैं। वस्तुतः इनके और इनके समसामयिक सिद्ध जालन्धरनाथ और कृष्णपाद के सम्बन्ध में अनेक दंतकथाएँ प्रचलित हैं। गोरखनाथ और मत्स्येन्द्रनाथ विषयक समस्त कहानियों के अनुशीलन से कई बातें स्पष्ट रूप से जानी जा सकती हैं। प्रथम यह कि मत्स्येन्द्रनाथ और जालन्धरनाथ समसामयिक थे, दूसरी यह कि मत्स्येन्द्रनाथ, गोरखनाथ के गुरू थे और जालन्धरनाथ कानुपा या कृष्णपाद के गुरू थे, तीसरी यह की मत्स्येन्द्रनाथ कभी योग मार्ग के प्रवर्तक थे, फिर संयोगवश ऐसे एक आचार में सम्मिलित हो गये थे जिसमें स्त्रियों के साथ अबाध संसर्ग मुख्य बात थी- सम्भ्वतः यह वामाचारी साधना थी। चैथी यह कि शुरू से ही जालन्धरनाथ और कानिपा की साधना पद्धति मत्स्येन्द्रनाथ और गोरखनाथ की साधना पद्धति से भिन्न थी।
प्रमाणों के आधार पर नाथमार्ग के आदि प्रवर्तकों का समय 9वीं शताब्दी का मध्य भाग ही उचित जान पड़ता है। इस मार्ग में पूर्ववर्ती सिद्ध भी बाद में चलकर अंतर्भुक्त हुए हैं और इसलिए गोरखनाथ के समबन्ध में ऐसी दर्जनों दंतकथाएँ चल पड़ी हैं, जिनको ऐतिहासिक तथ्य मान लेने पर तिथि-सम्बन्धी झमेला खड़ा हो जाता है।




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