भगवान विष्णु के अवतार
सम्पूर्ण आध्यात्मिक सूक्ष्म एवम् स्थूल सिद्धान्तों को व्यक्त करने का माध्यम मात्र मानव शरीर और कर्म क्षेत्र मात्र समाज ही है। साथ ही उसका मूल्यांकनकत्र्ता मानव का अपना मन स्तर ही है। इसलिए अवतार सम्पूर्ण सिद्धान्तों को कालानुसार व्यक्त सगुण रूप मानव शरीर ही होता है। मूलरूप से अवतार शिव-आत्मा-ईश्वर-ब्रह्म अर्थात् सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त के अवतार होते है परन्तु एकात्म ज्ञान अर्थात ब्रह्मा और एकात्मध्यान अर्थात् शंकर सार्वजनिक प्रमाणित दृश्य न हो सकने के कारण एकात्म कर्म-विष्णु के ही अवतार के रूप में जाना जाता है। क्योंकि एक मात्र कर्म ही मानव समाज में सार्वजनिक प्रमाणित होता है। इस एकात्म कर्म का कारण एकात्म प्रेम और एकात्म प्रेम का कारण मात्र एकात्म कर्म होता है। महाविष्णु के कुल चैबीस (1. सनकादि ऋषि (ब्रह्मा के चार पुत्र), 2. नारद, 3. वाराह, 4. मत्स्य, 5. यज्ञ (विष्णु कुछ काल के लिये इंद्र रूप में), 6.नर-नारायण, 7. कपिल, 8. दत्तात्रेय, 9. हयग्रीव, 10. हंस पुराण, 11. पृष्णिगर्भ, 12. ऋषभदेव, 13. पृथु, 14. नृसिंह, 15. कूर्म, 16. धनवंतरी, 17. मोहिनी, 18. वामन, 19. परशुराम, 20. राम, 21. व्यास, 22. कृष्ण, बलराम, 23. गौतम बुद्ध (कई लोग बुद्ध के स्थान पर बलराम को कहते है, अन्यथा बलराम शेषनाग के अवतार कहलाते हैं), 24. कल्कि) अवतार माने जाते हैं जिनमें कुल दस (1.मत्स्य, 2.कूर्म, 3.वाराह, 4.नृसिंह, 5.वामन, 6.परशुराम, 7.राम, 8.श्रीकृष्ण, 9.बुद्ध और 10.कल्कि) मुख्य अवतार हैं।
अदृश्य सत्य-सिद्धान्त से सार्वजनिक या ब्रह्माण्डीय प्रमाणित दृश्य सत्य-सिद्धान्त तक के व्यक्त होने की क्रिया में प्रयुक्त मानव शरीर ही अवतारों का शरीर है। इस क्रम में प्रत्येक अगला अवतार अपने पिछले अवतार का अगला चरण अर्थात् सामाजिक आवश्यकताओं की कालानुसार पूर्तिकत्र्ता सहित उसका पुनर्जन्म होता है। क्योंकि सत्य-सिद्धान्त को व्यक्त करने की इच्छा तब तक अवतारों में रहती है जब तक सत्य-सिद्धान्त पूर्णरूप से दृश्य सार्वजनिक या ब्रह्माण्डीय प्रमाणित रूप नहीं ले लेता। कोई भी मानव शरीर अवतारी ज्ञान, कर्म और ध्यान को रखते हुये भी यदि सम्पूर्ण सामाजिक या ब्रह्माण्डीय आवश्यकताओं का कालानुसार हल नहीं प्रस्तुत करता तो वह गुणों को रखते हुये भी अवतारी शरीर नहीं हो सकता। इस प्रकार प्रत्येक अगला अवतार अपने पिछले अवतार का संग्रहणीय, संक्रमणीय, गुणात्मक रूप का प्रतीक होता है। अवतारों का स्थूल शरीर किसी भी स्थूल अटलनीय, अपरिवर्तनीय, प्राकृतिक नियम-परिवर्तन या आदान-प्रदान से मुक्त नहीं होता सिर्फ उनका सूक्ष्म शरीर और व्यक्त सत्य-सिद्धान्त ही उससे मुक्त और अप्रभावी होता है जिसे दुःख-सुख, जन्म-मृत्यु इत्यादि से मुक्त कहते है।
अदृश्य काल के व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य काल में प्रमाणित प्राकृतिक चेतना से युक्त विष्णु के प्रथम छः मत्स्य, कर्म, वाराह, नृसिंह, वामन और परशुराम अंशावतार एकात्म कर्म से युक्त होकर व्यक्त के सार्वजनिक प्रमाणित अदृश्य काल के सार्वजनिक प्रमाणित प्राकृतिक चेतना से विष्णु के सातवें-श्रीराम अंशावतार एकात्मज्ञान से युक्त हुये। दृश्य काल के व्यक्तिगत प्रमाणित दृश्य काल में व्यक्तिगत प्रमाणित सत्य चेतना से युक्त विष्णु के आठवें- श्रीकृष्ण व्यक्तिगत प्रमाणित पूर्णावतार एकात्मज्ञान और एकात्मकर्म से तथा नवें-बुद्ध श्रीकृष्ण के अंशावतार एकात्मकर्म अैर एकात्मध्यान से युक्त हुये। सार्वजनिक या ब्रह्माण्डीय प्रमाणित वर्तमान सार्वजनिक प्रमाणित सत्य चेतना से विष्णु के दसवें और अन्तिम निष्कलंक कल्कि-श्री लव कुश सिंह ‘विश्वमानव’ एकात्म ज्ञान, एकात्मकर्म, एकात्मध्यान से युक्त पूर्ण दृश्य पूर्णावतार के रूप में व्यक्त हुये है।
मानव जाति के विकास और समस्याओं सहित जनसंख्या में बढ़ोत्तरी के फलस्वरूप उत्पन्न हुई प्रतिस्पर्धा के कारण प्रारम्भ में उनमें दो विचारधारा अर्थात मानसिकता अर्थात नेतृत्व मन समाज की व्यवस्था के प्रति उत्पन्न हुई। प्रथम मानव जाति समुदाय द्वारा की जाने वाली स्वतः स्फूर्त व्यवस्था वाला वैचारिक समुदाय अर्थात समाज या जनतन्त्र या जनराज्य या गणराज्य या गणतन्त्र। जिसे बनाये रखने वालों को भगवान, ईश्वर, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, परमेश्वर, गणपति, प्रजापति, भगवती, इन्द्र, देवता, ऋषि, गुरू, मुनि, संत, महात्मा, ब्राह्मण जिनमें सांसारिक भाव का बिल्कुल अभाव तथा यथार्थ ज्ञान प्रचुर मात्रा में होता था, कहा गया और इनकी पूजा की गयी। यही समुदाय ईश्वरवादी था। द्वितीय-व्यवस्था का अधिकार किसी एक को देने अर्थात राजा को देने वाला वैचारिक समुदाय अर्थात एकतन्त्र या राज्य या शासन तन्त्र। जिसे बनाये रखने वालों को दैत्य, दानव, राक्षस या असुर जिनमें सांसारिक भाव ही प्रचुर था इसके प्राप्ति का ज्ञान ही इनका ज्ञान था, कहा गया और इस विचार के विनाश का प्रयत्न होता रहा। यही समुदाय हमेशा अनीश्वर वादी रहा।
वर्तमान दृश्य काल में एकतन्त्रीय राज्य या राजा तो सम्पूर्ण विश्व से लगभग पूर्ण रूप से समाप्त हो चुका है। भारत में राजतन्त्र या एकतन्त्रीय राज्य समाप्त होकर लोकतन्त्र या जनतन्त्र या गणतन्त्र या गणराज्य व्यवस्था स्थापित होकर पूर्णता की ओर बढ़ रही है क्योंकि वर्तमान लोकतन्त्र या गणराज्य में सिर्फ तन्त्र या राज्य ही प्रभावी है, लोक या जन या स्व अब धीरे-धीरे दृश्य हो व्यक्त हो रहा है। उसका कारण मात्र जनता द्वारा नेतृत्वकत्र्ताओं का चुना जाना है जिससे वे समाज या जनता के लिए मजबूरन कुछ सोच रहे है परन्तु स्वतंत्र में स्व का तन्त्र अभी स्थापित नहीं हुआ है अवतारों का अवतरण इस व्यवस्था को स्वस्थता और पूर्णता प्रदान करना ही होता है क्योंकि यह आत्मा का तन्त्र अर्थात उनके अदृश्य सार्वभौम सत्य-सिद्धान्त के दृश्य होने का साधन होता हे अर्थात यही समाज और जनता के यथार्थ नेतृत्वकत्र्ता, सेवक और शुभ चिन्तक होते है।
उपरोक्त में प्रथम समुदाय ही अन्तर्मुखी आध्यात्मिक है तथा द्वितीय समुदाय ही बहिर्मुखी भौतिकवादी है जिन्हें उन क्षेत्रों में प्राथमिकता से व्यक्त होने के कारण प्राच्य और पाश्चात्य संस्कृति कहते है जबकि भूमण्डलीकरण के प्रभावों से मिश्रित होकर यह पूर्णतया दिशा और देश अनुसार से हटकर व्यक्ति में स्थापित हो गया। परिणामस्वरूप पाश्चात्य देशों में दोनों संस्कृति के व्यक्ति मिल जाते है। मानव जाति के विकास के साथ ही दोनांे विचार के समुदायों में आवश्यकता और सर्वोच्चता के लिए युद्ध होते रहते है। पहले अवतारी शरीर उसके नेतृृत्वकर्ता राजा के शारीरिक वध से यह कार्य सम्पन्न करते थे अब जबकि ऐसा नहीं है तब मानसिक वध के द्वारा ही यह कार्य सम्पन्न हो सकेगा। समाज में आध्यात्म के अधिपत्य से भोग सहित समाज का विकास होते हुये समभाव प्रेम में बदल जाता है तथा भौतिकता के अधिपत्य से भोग सहित समाज विकास अवरूद्ध हो अत्याचार में बदल जाता है ठीक यही स्थिति व्यक्ति के साथ भी होती है। विष्णु के निम्न दस अवतार है-ं
अ. व्यक्तिगत प्रमाणित पूर्ण प्रत्यक्ष अवतार
01. अदृश्य काल के व्यक्तिगत प्रमाणित काल में व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य प्राकृतिक चेतना से युक्त सत्य आधारित सतयुग में प्रथम अवतार - मत्स्य अवतार
02. अदृश्य काल के व्यक्तिगत प्रमाणित काल में व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य प्राकृतिक चेतना से युक्त सत्य आधारित सतयुग में द्वितीय अवतार - कूर्म या कच्छपावतार
03. अदृश्य काल के व्यक्तिगत प्रमाणित काल में व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य प्राकृतिक चेतना से युक्त सत्य आधारित सतयुग में तृतीय अवतार - वाराह अवतार
04. अदृश्य काल के व्यक्तिगत प्रमाणित काल में व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य प्राकृतिक चेतना से युक्त सत्य आधारित सतयुग में चैथे अवतार - नृसिंह अवतार
05. अदृश्य काल के व्यक्तिगत प्रमाणित काल में व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य प्राकृतिक चेतना से युक्त सत्य आधारित सतयुग में पाचवें अवतार - वामन अवतार
ब. सार्वजनिक प्रमाणित अंश प्रत्यक्ष अवतार
06. अदृश्य काल के व्यक्तिगत प्रमाणित काल में व्यक्तिगत प्रमाणित अदृश्य प्राकृतिक चेतना से युक्त सत्य आधारित सतयुग में छठवें अवतार - परशुराम अवतार
स. सार्वजनिक प्रमाणित पूर्ण प्रत्यक्ष अवतार
07. अदृश्य काल के सार्वजनिक प्रमाणित काल में सार्वजनिक प्रमाणित अदृश्य प्राकृतिक चेतना से युक्त यज्ञ आधारित त्रेता युग में विष्णु के सातवंे अवतार - श्री राम अवतार
द. व्यक्तिगत प्रमाणित पूर्ण प्रेरक अवतार
08. दृश्य काल के व्यक्तिगत प्रमाणित काल में व्यक्तिगत प्रमाणित पूर्ण दृश्य सत्य चेतना से युक्त भक्ति और प्रेम आधारित द्वापर युग में आठवें अवतार - योगेश्वर श्री कृष्ण अवतार
य. सार्वजनिक प्रमाणित अंश प्रेरक अवतार अवतार
09. दृश्य काल के व्यक्तिगत प्रमाणित काल में सार्वजनिक प्रमाणित अंश दृश्य सत्य चेतना से युक्त संघ और योजना आधारित कलियुग के प्रारम्भ में नवें अवतार - बुद्ध अवतार
र. सार्वजनिक प्रमाणित पूर्ण प्रेरक अवतार
10. दृश्य काल के सार्वजनिक प्रमाणित काल में सार्वजनिक प्रमाणित पूर्ण दृश्य सत्य चेतना से युक्त संघ और योजना आधारित कलियुग के अन्त में दसवें अवतार - भोगेश्वर श्री लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ निष्कलंक कल्कि अवतार
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