Sunday, March 15, 2020

संत श्री रामानन्द

संत श्री रामानन्द 


परिचय - 
जन्म सं. 1356 माघ, कृष्णा सप्तमी, तीर्थराज प्रयाग के कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में पिता श्री पुण्य सदन और माता सुशीला के घर हुआ। बचपन का नाम रामदत्त था। 12 वर्ष की उम्र में विशिष्टाद्वैत श्री सम्प्रदाय के आचार्य राघवानन्द जी से दीक्षा ली। इन्होंने जाति-पाँति के भेद को मिटाकर महान् क्रान्ति की, इनका कहना था कि - ”जाति पाँति पूछे नहीं कोई। हरि को भजै सो हरि का होई।।“ 
लोक सम्पर्क के निकट आने तथा जाति-पाँति के भेदभाव का मतभेद होने के कारण श्री सम्प्रदाय से अलग होकर ”रामावत सम्प्रदाय“ चलाया। इन्होंने म्लेच्छ हो जाने वाले हिन्दुओं को राममन्त्र देकर कण्ठीमाला दी। वर्ण-जाति के नियम शिथिल कर सर्वसाधारण को एकता के सूत्र में पिरोया। उनमें से संयमशील साधुओं की टोली संगठित कर प्रचार को भेजा। इनके विभिन्न जाति के 12 प्रमुख शिष्य थे। 1. कबीर दास-जुलाहा, 2. रैदास (रविदास)-चमार, 3. सैना-नाई, 4. सदन-कसाई, 5. नरहरिदास-ब्राह्मण, 6. धन्ना-जाट, 7. पीपा- राजपूत इत्यादि थें। संवत 1505 में 120 वर्ष की आयु में परलोक सिधारे। ज्ञानतिलक, रामरक्षा इनकी प्रमुख रचनाओं में है।
1. कबीर दास
कबीर के जीवन के सम्बन्ध में, इतिहासकारों द्वारा सर्वमान्य आलेख हमारे सामने नहीं है। चैदहवीं शताब्दी के अन्त में भारत की राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति विपदाग्रस्त थी। उस समय निर्गुण भक्ति में, भारतीय और सूफी संत परम्पराओं का इन्होंने समन्वय किया। कहते हैं कि नीरू नाम का जुलाहा अपनी विवाहिता पत्नी नीमा का गौना कराकर पहले-पहल अपने घर ला रहा थ, रास्ते में लहरतारा तालाब (काशी-वाराणसी) के किनारे एक शिशु को पाया तथा नाम कबीर रखा। कबीर अधिकांश जीवन काशी में व्यतीत किये और अन्त में मगहर चले गये वहीं 120 वर्ष की आयु में शरीर छोड़ दिये। इन्हें हिन्दू और मुसलमान दोनों मानते हैं। इनकी रचनाओं में ”कबीर बीजक“ प्रमुख है। अन्य रचनाओं में साखी, सबद और रमैनी प्रमुख है। उत्तरी भारत के जन हृदय पर इनका प्रभाव पड़ा। कबीर पन्थ नाम से अलग पन्थ चल पड़ा।
2. रैदास (रविदास)
निष्ठापूर्वक भगवत् नाम लेने का इन्हें ऐसा आभास हो गया कि अपने जाति कर्म (चर्मकार) का कार्य करते हुए, भगवान का अन्तःसाक्षात्कार किया। इनकी साधना की उच्चावस्था को देखकर राजरानी मीरा ने इन्हें अपना गुरू मान लिया और कृष्ण भक्ति में तल्लीन हो गई। ये संत रैदास के नाम से जाने जाते हैं। दिन में दो जोड़े जूते बनाते, जिसमें से एक जोड़ा उस मार्ग पर जाने वाले संत को बिना मूल्य लिए पहना देते। दूसरा जोड़ा साधारण लाभ लेकर बेच देते और उसी से अपना जीवन निर्वाह करते। इन्होंने कई भजन, पद लिखे उनमें से नीचे लिखा सर्वाधिक प्रचलित है-
प्रभुजी! तुम चन्दन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समानी।
प्रभुजी! तुम दीपक हम बाती, जाकी ज्योति  बरै दिन-राती।
प्रभुजी! तुम मोती  हम धागा, जैसे  सोनेहिं  मिले  सुहागा।
प्रभुजी! तुम घन-बन हम मोरा, जैसे  चितवत् चन्द चकोरा।
प्रभुजी! तुम स्वामी  हम  दासा, ऐसी  भगति  करै रैदासा।।
सिक्ख धर्म के ”गुरू ग्रन्थ साहिब“ में 15 संतों के कुल 778 पद हैं। जिनमें 541 कबीर के, 122 शेख फरीद के, 60 नामदेव के और 40 संत रविदास के हैं। अन्य संतो के 1 से 4 पद को ग्रन्थ में स्थान दिया गया है। ग्रन्थ में ये रचनाएँ पिछले 400 वर्षो से अधिक समय से बिना किसी परिवर्तन के पूरी तरह सुरक्षित हैं। 


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