केशवचन्द्र सेन - प्रार्थना समाज
परिचय -
केशवचन्द्र सेन का जन्म 19 नवम्बर, 1938 को कलकत्ता में हुआ। उनके पिता प्यारे मोहन प्रसिद्ध वैष्णव एवं विद्वान दीवान राजकमल के पुत्र थे। बाल्यावस्था से ही केशवचन्द्र का उच्च आध्यात्मिक जीवन था। केशवचन्द्र सेन ने ही आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती को सलाह दी कि वे सत्यार्थ प्रकाश की रचना हिन्दी में करें। 1866 ई. में ब्रह्म समाज से अलग होकर भारतवर्षीय ब्रह्म समाज की स्थापना की। धर्मतत्व के तात्कालिन विचारधारा को नवीन रूप दिया। 1870 ई. में केशवचन्द्र ने इंग्लैण्ड की यात्रा की। इस यात्रा से पूर्व तथा पश्चिम एक-दूसरे के निकट आए तथा अन्तर्राष्ट्रीय एकता का मार्ग प्रशस्त हुआ। 1975 ई. में केशवचन्द्र ने ईश्वर के नवीन स्वरूप-नव विधान समरूप धर्म (औपचाारिक रूप से 1880 ई. में घोषित) नवीन धर्म की सम्पूर्णता (संसिद्धि) का संदेश दिया। अपनी नवसंहिता में केशवचन्द्र ने इस विश्व धर्म का प्रतिपादन इस प्रकार किया - ”हमारा विश्वास विश्वधर्म है जो समस्त प्राचीन ज्ञान का संरक्षक है एवं जिसमें समस्त आधुनिक विज्ञान ग्राह्य है, जो सभी धर्म गुरूओं तथा संतों में एकरूपता, सभी धर्मग्रन्थों में एकता एवं समस्त रूपों में सातत्य स्वीकार करता है, जिसमें उन सभी का परित्याग है जो पार्थक्य तथा विभाजन उत्पन्न करते हैं एवं जिसमें सदैव एकता तथा शान्ति की अभिवृद्धि है, जो तर्क तथा विश्वास योग्य तथा भक्ति तपश्चर्या, और समाजधर्म को उनके उच्चतम रूपों में समरूपता प्रदान करता है एवं जो कालान्तर में सभी राष्ट्रों तथा धर्म को एक राज्य तथा एक परिवार का रूप दे सकेगा।“ केशवचन्द्र का विधान (दैवी संव्यवहार विधि), आवेश (साकार ब्रह्म की प्रत्यक्ष प्रेरणा) तथा साधु समागम (संतों तथा धर्मगुरूओं से आध्यात्मिक संयोग) पर विशेष बल देना। केशवचन्द्र सेन 8 जनवरी, 1884 ई. को दिवंगत हुए।
प्रार्थना समाज -
आचार्य केशवचन्द्र सेन की प्रेरणा से महादेव गोविन्द रानाडे, डाॅ0 आत्मारा पांडुरंग, चन्द्रावरकर आदि द्वारा सन् 1867 ई. में प्रार्थना समाज की स्थापना मुम्बई में हुई। जी.आर.भण्डारकर प्रार्थना समाज के अग्रणी नेता थे। प्रार्थना समाज के आलोचकों द्वारा किये गये असत्य प्रचार को मिटाने के लिए इन नेताओं को बहुत संघर्ष करना पड़ा। असत्य प्रचार के अन्तर्गत यह कहा जाता था कि प्रार्थना समाज ईसाई धर्म के अनुकरण पर आधारित है और यह देश के प्राचीन धर्म के विरूद्ध है। प्रार्थना समाज के नेताओं के अनुसार इसका उद्देश्य प्रार्थना और सेवा द्वारा ईश्वर की पूजा करना था। जैसा नाम से प्रकट है, प्रार्थना ही सामाज की आत्मा है। बंगाल के ब्रह्म समाज की भाँति उपनिषदों और भगवद्गीता की शिक्षाएँ प्रार्थना समाज की आधार हैं किन्तु एक बात से यह ब्रह्म समाज से भिन्न है, इसमें भारत के, विशेषतया महाराष्ट्र के, मध्यकालीन संतो- ज्ञानेश्वर, नामदेव, एकनाथ और तुकाराम की शिक्षाओं को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। जाति प्रथा का विरोध, स्त्री-पुरूष विवाह की आयु में वृद्धि, विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा इत्यादि प्रार्थ समाज के उद्देश्य थे। प्रार्थना समाज ने 19वीं शती के नवें दशक में नारी जागरण की योजनाओं का आरम्भ किया। 1882 ई. में आर्य महिला समाज की स्थापना उन्हीं योजनाओं का फल है। 1878 ई. में प्रार्थना समाज द्वारा स्थापित पहला रात्रि विद्यालय जन-शिक्षा व प्रौढ़-शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी रहा। वासुदेव बाबाजी नौरंगे बालकाश्रम की स्थापना लालशंकर उमाशंकर द्वारा पंढरपुर में 1875ई. में हुई। यह बालकाश्रम बाद में प्रार्थना समाज के संरक्षण में आ गया। यह अपने ढंग का सर्वाधिक प्राचीन और बड़ी संस्था है और यह 1975 में अपनी शताब्दी पूर्ण कर चुकी है। प्रार्थना समाज के संरक्षण में दो बालकाश्रम और चलते हैं- डी.एन सिकर होम, विले पार्ले मुम्बई और सतारा जिले के वाई नामक स्थान पर। ”दि डिप्रेस्ड क्लास मिशन सोसायटी आॅफ इण्डिया“ नाम की संस्था जो अछूतोद्धार के लिए प्रसिद्ध है, प्रार्थना समाज के एक कार्यकर्ता विठ्ठल रामजी शिंदे द्वारा स्थापित हुई। 1917 ई. में प्रार्थना समाज ने राममोहन अंग्रेजी विद्यालय की स्थापना की। अब इसके संरक्षण से दस से अधिक विद्यालय मुम्बई और उसके आस-पास चल रहें हैं। प्रार्थना समाज संस्था के सहयोग से कालान्तर में दलित जाति मण्डल, समाज सेवा संघ तथा दक्कन शिक्षा सभा की स्थापना हुई। पंजाब में इस समाज के प्रचार-प्रसार में दयाल सिंह प्रन्यास ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। दक्षिण भारत में विश्वनाथ मुदलियर के नेतृत्व में ”वेद समाज“ का नाम बदल कर ”दक्षिण भारत वेद समाज“ रखा गया।
No comments:
Post a Comment