पं0 मदन मोहन मालवीय
परिचय -
हिन्दूत्व के गौरव, विशाल, गम्भीर हृदय वाले मनस्वी पं. मदन मोहन मालवीय जी ने 25 दिसम्बर, 1861 में तीर्थराज प्रयाग में जन्म लेकर पं. ब्रजनाथ जी के कुल को ही नहीं, इस वसुन्धरा को कृतार्थ किया। पिता सच्चे सनातनी और दृढ़ भगवत् विश्वासी थे। पूर्वज मालवा से आने के कारण मालवीय कहलाये। माता बड़ी उदार और पति अनुगामिनी थीं। ऐसे विशुद्ध आस्तिक माता-पिता का प्रभाव मदन मोहन पर पड़ना स्वाभाविक था। मीरजापुर के प्रख्यात सनातनी पण्डित नन्दराम जी की कन्या कुन्दन देवी से मालवीय जी का पाणिग्रहण संस्कार सम्पन्न हुआ। मालवीय जी कट्टर हिन्दू थे। आचार में अत्यन्त संयमी और विचार में परम उदार हिन्दू धर्म की विशेषता उनमें स्पष्ट थी। उनका स्पर्शास्पर्श का इतना विचार था कि बड़े-बड़े जक्शनों के प्लेटफार्म पर चैका लगाकर खिचड़ी बनाना सामान्य बात थी। वे किसी के हाथ का कच्चा भोजन नहीं करते थे।
जब वे गाँधी जी के साथ गोलमेज परिषद् में भाग लेने लन्दन गये, तो उनके साथ गंगाजल, मिट्टी और गौ भारत से गई थी, और लन्दन यात्रा के बाद सविधि प्रायश्चित किया था। महामना मालवीय जी का घर अतिथि सत्कार के लिए विख्यात था। सूर्योदय के साथ ही रसोंई का चूल्हा जल जाता ओर रात्रि के एक बजे तक चैका चलता। जो आया है, चाहे किसी समय प्रस्थान करना हो, भोजन करके ही जाता था। प्राणपण से ब्राह्मणों की सेवा करते। प्रत्येक हिन्दू के घर में कम से कम एक गाय की सेवा के वे हिमायती थे।
पुराणों के प्रति उन्हें अगाध श्रद्धा थी। श्रीमद्भागवत पुराण का पाठ नियमित चलता। भागवत् के श्लोक पढ़ते ही नेत्रों से अश्रुधारा फूट पड़ती। उनकी महत्वाकांक्षा थी कि एक साथ एक स्थान पर सस्वर सामगान करें। इसी प्रेरणा से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, उनकी भारत को अमर भेंट है। जीवन पर्यन्त विश्वविद्यालय के लिए कुछ न कुछ सहायता जुटाते रहे। इसके लिए अपने आपको दुनियाँ का सबसे बड़ा भिखारी मानते थे।
काला कांकर नरेश राजा रामपाल सिंह जी से आपको राजनैतिक जीवन की प्रेरणा मिली। काला कांकर से आपने पत्रकार जीवन में प्रवेश किया। प्रयाग आने पर ”अभ्युदय“ और ”इंडियन ओपीनियन“ का सम्पादन हाथ में लिया। लन्दन जाने से पूर्व सत्याग्रह के प्रमुख कर्णधार थे। उनके व्यापक प्रभाव के कारण कुछ दिनों के लिए बन्दी बनाने के लिए अंग्रेज सरकार को बहुत सोचना पड़ा। महात्मा गाँधी उन्हें बड़ा भाई कहते थे। गाँधी जी का कहना था - ”मैं तो मालवीय जी का पुजारी हूँ। यौवन काल से आज तक उनकी देशभक्ति अविच्छिन्न है। मैं उन्हें सर्वश्रेष्ठ हिन्दू मानता हूँ। उनके विशाल हृदय में शत्रु भी समा सकते थे।“
हिन्दू महासभा के मालवीय जी जन्मदाता थे। हिन्दू संगठन और हिन्दू धर्म उनका प्राण था। वे किसी से द्वेष नहीं करते थे। नोआखाली हत्याकाण्ड से उनका हृदय आहत हो गया, और उसी चोट के कारण 12 नवम्बर, 1946 को पार्थिव शरीर छोड़कर चले गये। उनके अन्तिम शब्दों में हिन्दू संगठन की पुकार थी। उन्हांेने कहा था-”जो हिन्दूओं को शान्ति के साथ रहने नहीं देना चाहते, उनके साथ किसी प्रकार की सहिष्णुता नहीं हो सकती। हिन्दू संस्कृति और हिन्दू धर्म खतरे में है। ऐसा समय आ गया है कि हिन्दू एक होकर सेवा तथा सहायता के साधनों को पुष्ट करें।“ महामना मालवीय जी के बारे में एनी बेसेन्ट का कहना था - ”मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि विभिन्न मतों के मध्य, केवल मालवीय महाराज ही भारतीय एकता की मूर्ति बने खड़े हैं।“
एक सच्चा मानव, आदर्श हिन्दू, एक महापुरूष इस धरती पर अवतीर्ण हुआ और अपना कत्र्तव्य-निर्वाह कर इस धरती से उठ गया। यदि राष्ट्र के कर्णधार ओर हिन्दू एक होकर महामना के आदर्शो को स्वीकार कर लेते, तो भारत सचमुच ऋषियों का भारत हो जाता। वे सादगी, सदाचार और आदर्श की जीवंत प्रतिमा थे।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बी.एच.यू)
पं.मदनमोहन मालवीय ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रीगणेश 1904 ई. में किया, जब काशीनरेश महाराज प्रभुनारायण सिंह की अध्यक्षता में संस्थापकों की प्रथम बैठक हुई। 1905 ई. में विश्वविद्यालय का प्रथम पाठ्यक्रम प्रकाशित हुआ। जनवरी, 1906 ई. में कुंभ मेले में मालवीय जी ने त्रिवेणी संगम पर भारत भर से आयी जनता के बीच अपने संकल्प का दोहराया। कहा जाता है, वहीं एक वृद्धा ने मालवीय जो को इस कार्य के लिए सर्वप्रथम एक पैसा चंदे के रूप में दिया। डाॅ. ऐनी बेसेन्ट काशी में विश्वविद्यालय की स्थापना में आगे बढ़ रही थी। इस विश्वविद्यालय के मूल में डाॅ. ऐनी बेसेन्ट द्वारा स्थापित और संचालित सेन्ट्रल हिन्दू कालेज प्रमुख था। इन्हीं दिनों दरभंगा के राजा महाराज रामेश्वर सिंह भी काशी में ”शारदा विद्यापीठ“ की स्थापना करना चाहते थे। इन तीन विश्वविद्यालय की योजना परस्पर विरोधी थी, अतः मालवीय जी ने डाॅ. ऐनी बेसेन्ट और महाराज रामेश्वर सिंह से परामर्श कर अपनी योजना में सहयोग देने के लिए उन दोनों को राजी कर लिया। फलस्वरूप बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी सोसाइटी की 15 दिसम्बर, 1911 को स्थापना हुई, जिसके महाराज दरभंगा अध्यक्ष, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के प्रमुख बैरिस्टर सुन्दरलाल सचिव, महाराज प्रभुनारायण सिंह, पं. मदनमोहन मालवीय एवं डाॅ. ऐनी बेसेन्ट सम्मानित सदस्य थी। तत्कालीन शिक्षामंत्री सर हारकोर्ट बटलर के प्रयास से 1915 ई. में केन्द्रीय विधानसभा से हिन्दू यूनिवर्सिटी एक्ट पारित हुआ, जिसे तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड हाडिंज ने तुरन्त स्वीकृति प्रदान कर दी। वसंत पंचमी, 6 फरवरी, 1916 ई. के दिन ससमारोह वाराणसी में गंगातट के पश्चिम, रामनगर के समानान्तर महाराज प्रभुनारायण सिंह द्वारा प्रदत्त भूमि में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का शिलान्यास हुआ। उक्त समारोह में देश के अनेक गवर्नरों, राजे-रजवाड़ों तथा सामंतों ने गवर्नर जनरल एवं वाइसराय का स्वागत और मालवीय जी को सहयोग करने के लिए हिस्सा लिया। अनेक शिक्षाविद् वैज्ञानिक एवं समाजसेवी भी इस अवसर पर उपस्थित थे। गाँधी जी भी विशेष निमंत्रण पर पधारे थे। अपने वाराणसी आगमन पर गाँधी जी ने डाॅ. बेसेन्ट की अध्यक्षता में आयोजित सभा में राजा-राजवाड़ों, सामंतो तथा देश के अनेक गणमान्य लोगों के बीच, अपना वह ऐतिहासिक भाषण दिया, जिसमें एक ओर ब्रिटीश सरकार की और दूसरी ओर हीरे-जवाहरात तथा सरकारी उपाधियों से लदे, देशी रियासतों के शासको की घोर भत्र्सना की गई थी।
संप्रति इस विश्वविद्यालय के दो परिसर हैं। मुख्य परिसर 1300 एकड़ वाराणसी में स्थित है। मुख्य परिसर में 3 संस्थान, 14 संकाय और 124 विभाग हैं। विश्वविद्यालय का दूसरा परिसर 2700 एकड़ मीरजापुर जनपद के बरकछा नामक जगह पर स्थित है। मुख्य परिसर के प्रांगण में विश्वनाथ का एक विशाल मन्दिर भी है। विशाल संर सुन्दर लाल चिकित्सालय, गोशाला, प्रेस, बुकडिपो एवं प्रकाशन, टाउन कमेटी (स्वास्थ्य), पी.डब्ल्यू.डी., स्टेट बैंक शाखा, पर्वतारोहण केन्द्र, एन.सी.सी. प्रशिक्षण केन्द्र, हिन्दू यूनिवर्सिटी नाम से डाकखाना, छात्रावास, जनसामान्य की सुविधा एवं सेवायोजन कार्यालय भी विश्वविद्यालय परिसर में संचालित है। श्री सुन्दरलाल, पं.मदनमोहन मालवीय, डाॅ. एस.राधाकृष्णन् (भूतपूर्व राष्ट्रपति), डाॅ. अमरनाथ झा, आचार्य नरेन्द्रदेव, डाॅ. रामस्वामी अय्यर, डाॅ. त्रिगुण सेन (भूतपूर्व केन्द्रीय शिक्षामंत्री) जैसे मूर्धन्य व्यक्ति यहाँ के कुलपति रह चुके हैं। केन्द्रीय हिन्दू विद्यालय, केन्द्रीय हिन्दू कन्या विद्यालय, रणवीर संस्कृत विद्यालय, पिदी ग्यान पिठ हाई विद्यालय सम्बद्ध विद्यालय हैं। विश्वविद्यालय में करीब 250 प्रोफसर, 500 रीडर एवं 1000 से अधिक लेक्चरर हैं। कार्यालयों, अधिकारीयों सहित लिपिक एवं चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियों की संख्या करीब 6000 हजार है। वर्तमान में इस विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त है। इस विश्वविद्यालय सरीखा दूसरा कोई उत्कृष्ट संस्थान ही नहीं जहाँ संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा यूनेस्को चेयर फार पीस एंड इंटरकल्चर अंडरस्टैण्डिंग की स्थापना हुई।
इस विश्वविद्यालय से शान्ति स्वरूप भटनागर, टी.आर.अनन्तरामन्, अहमद हसन दानी (पुरातत्व विद्वान एवं इतिहासकार), भूपेन हजारिका (गायक एवं संगीतकार), लालमणि मिश्र (संगीतकार), बीरबल साहनी (पक्षी विज्ञान के विद्वान), प्रकाश वीर शास्त्री (भूतपूर्व सांसद, आर्य समाज आन्दोलन के प्रणेताओं में से एक), आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तम्भों मे से एक एवं इतिहासकार), रामचन्द्र शुक्ल (चित्रकार), जयन्त विष्णु नार्लिकर, एम.एन.दस्तुरी (धातुकर्म के विद्वान), नरला टाटा राव, सुजीत कुमार (अभिनेता), समीर (गीतकार), मनोज तिवारी (भोजपुरी अभिनेता एवं सांसद) इत्यादि ज्ञान प्राप्त कर चुके हैं।
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