सांई बाबा शिरडी वाले
परिचय -
शिरडी के साईं बाबा को श्रद्धालु अपने ज्ञान, भक्ति और अनुभव के अनुसार विभिन्न रूपों में जानते, मानते और पूजते हैं। कुछ उन्हें साधारण, अपितु उच्च कोटि का फकीर मानते हैं। कुछ सद्गुरू, संत और कुछ उन्हें साक्षात् परब्रह्म के रूप में मानते हैं। शिरडी के साई बाबा क्या थे? लोगों की भावनाएँ क्या हैं? इस सम्बन्ध में गोस्वामी तुलसीदास जी की वाणी कहती है- ”जिनके रही भावना जैसी, प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी“। वस्तुतः अध्यात्म जगत् का सम्पूर्ण रहस्य श्रद्धालु की श्रद्धा और भावना पर ही निर्भर करता है। उसके लिए वह वैसा ही सत्य है। शिरडी मध्य रेलवे के मनमाड स्टेशन से आगे तीसरे स्टेशन कोपर गाँव के पास है। नासिक से राज्य परिवहन निगम की बसें भी चलती हंै।
शिरडी के साईं बाबा की महिमा को देखते हुए, सहज ही विचार आता है कि वे कहाँ के थे? कहाँ पैदा हुए थे? क्या साधना की? आदि-आदि, परन्तु संत समष्टि के होते हैं। उनका अपना कोई जीवन नहीं होता। वे सदा अपने को रहस्य में रखकर ही जगत् का कल्याण करते हैं और लोग उनके चरणों में श्रद्धवनत हो जाते हैं। साई बाबा कहाँ पैदा हुए? यह कहीं कुछ वदित नहीं होता। इतना अवश्य मिलता है कि आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व शिरडी में आने वाली एक बारात के साथ बाबा आये थे, और बारात चली जाने के बाद, वहीं एक नीम के पेड़ के नीचे, पुरानी मस्जिद के पास बैठे रह गये। उनका नाम, गाँव किसी को पता नहीं था। माल्हसापति (खण्डेराव) नाम के एक भक्त ने, उनकी वेशभूषा देखकर, उनसे कहा कि ”आओ साई“ और आगे चलकर गाँव में साई बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गये। उनका नाम, माता-पिता, कुल गाँव के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
बाबा का स्थान उसी नीम के पेड़ के नीचे हो गया और आने वाले लोगों को उन्होंने आनी साधना की सिद्धि से चमत्कृत किया। दुखियों को दुःख से, रोगियों को रोग से मुक्ति मिलने लगी, तो बाबा के प्रति लोगों की श्रद्धा बढ़ती चली गई। बायजाबाई नाम की एक माता उनकी सेवा में रहने लगी। उसे कई अनुभव हुए और चमत्कार देखे, तो उसकी आस्था और दृढ़ होती चली गई। बायजाबाई नित्य सेवा में रहते हुए साई बाबा के लिए भोजन-प्रसाद तैयार करती। हिन्दू और मुसलमान दोनों समुदाय के लोग बाबा के पास जाते और अपनी कामनाएँ सफल करते। बाबा मानव मात्र के लिए एक थे। वे कहते थे कि - ”सबका मालिक एक है।“ मानव, मानव के प्रति उनके मन में कोई भेद नहीं था।
लखनऊ कांग्रेस के 1916 ई. के अधिवेशन पश्चात्, महर्षि शुद्धानन्द भारती के साथ तिलक जी शिरडी पहुँचें और साई बाबा के इस चमत्कारी वाक्य - ”इतनी आवाज करने से आजादी नहीं मिलेगी“ को सुनकर (यही वाक्य अधिवेशन में शुद्धानन्द भारती जी ने कहा था) कहा, कैसे मिलेगी? साई बाबा ने खड़े होकर घोषित किया - ”अल्लाह अच्छा करेगा, अल्लाह मालिक....!“ तिलक जी साई बाबा के परम भक्त हो गये। बाबा की विनम्रता, चमत्कारों से लोग आकर्षित होने लगे। कलकत्ता की एक वृद्ध ईसाई भी बाबा का चमत्कार देखकर उनकी भक्त बन गईं।
साई बाबा ने सदैव ही अंहकार और पाखण्ड का विरोध किया। समन्वय की भावना से बाबा सबको आदर, सम्मान देते, सभी में ईश्वर का निवास है। बाबा के ग्यारह वचन सिद्धान्त माने जाते हैं। मंगलवार, 15 अक्टुबर, सन् 1918 ई. की विजयदशमी को बाबा समाधि में लीन हो गये। इससे पूर्व बायजाबाई को बाबा ने नौ रूपये दिये। वह खजाना बाबा के आशीर्वाद के रूप में आज भी बायजाबाई के परिवार के पास है। सभी सम्पन्न व श्रद्धालु हैं। उनके जीवन की अनेक चमत्कारी घटनाएँ है। वर्तमान में शिरडी के साईं बाबा का बहुमान्य स्थान है। प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु दर्शनार्थ जाते हैं। भोजन, प्रसाद, भण्डारे की समुचित व्यवस्था है। अब इस स्थान का प्रबन्ध साईं सेवा ट्रस्ट के हाथ में है, जिसकी व्यवस्था शासन के नियंत्रण में चलती है। आज भी श्रद्धालुओं को बाबा के चमत्कार देखने को मिलते हैं। उनका मानना है - ”साईं का नाम जबान पर रख, जमीन-आसमाँ तो क्या, खुद, खुदा तेरा हो जायेगा।“
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