Sunday, March 15, 2020

गुरू

गुरू 
दिनांक 24 अक्टूबर 1995 से 16 जुलाई 2000 तक का समय सर्वाधिक खगोलीय घटनाओं वाला समय रहा है। जिसमें 24 अक्टूबर 1995 अमावस्या दीपावली के दिन पूर्ण सूर्यग्रहण, 18 से 22 नवम्बर 1997 (पाँच दिन) तक आठ ग्रहों का 130 डिग्री के बीच आना फरवरी व मार्च 1999 में एक ही महीनें में दो पूर्ण चाँद, 11 अगस्त 1999 को पूर्ण सूर्य ग्रहण, 18 नवम्बर 1999 को उल्काओं की आतिशबाजी का नजारा, 22 दिसम्बर 1999 को 133 वर्ष बाद सबसे बड़ा चाँद, 5 मई 2000 को 26 डिग्री के बीच सूर्य-चाँद सहित पाँच ग्रहों का आना और 16 जुलाई 2000 गुरुपूर्णिमा के दिन ही पूर्ण चन्द्रग्रहण है। इसके अलावा सन् 1995 के अन्त में गणेश जी का दूध पीना तथा उत्तर भारत के शिव मन्दिरों में स्थित शिवलिंगों का रंग बदलना जिससे तीसरे नेत्र के खुलने का अनुमान अलग घटना है। (देखें- ”अमर उजाला“ इलाहाबाद संस्करण 25-6-1999) उपरोक्त अवधि के 1999 में ही सावन मास का मलमास या पुरुषोत्तम मास या अधिक मास या अधिमास के रुप में शिवभक्ति के लिए अतिरिक्त माह हुआ है। भारत के लिए उपरोक्त समय में ही स्वतन्त्रता और संविधान के 50 वर्ष भी पूरे हुए हैं। 14-15 अगस्त 1947 की रात जब भारत स्वतन्त्र हुआ था तब आठों ग्रह सहित सूरज चाँद अर्थात् पूरा सौरमण्डल भारत के आकाश में अनुपस्थित था जबकि उपरोक्त समय के स्वतन्त्रता दिवस 15 अगस्त 1999 को मंगल और चाँद को छोड़ सभी ग्रह और तारे पहली बार लाल किले पर झण्डा फहराने के समय उपस्थित थे। (देखें- ”दैनिक जागरण“ वाराणसी संस्करण, दिनांक 15-08-1999) इतना ही नहीं उपरोक्त समय में ही ईसाई, ईस्लाम और हिन्दू का महत्वपूर्ण दिन क्रमशः नया वर्ष 1 जनवरी 1998, रमजान का प्रारम्भ और वृहस्पतिवार (विष्णु का दिन) प्रथम बार एक ही दिन संयोग हुआ। उपरोक्त समय में ही ऐतिहासिक शिकागो वकृतता के बाद स्वामी विवेकानन्द के भारत लौटने का 100 वर्ष भी पूर्ण हुआ। उपरोक्त समय में ही शिकागो वकृतता के समय स्वामी विवेकानन्द के उम्र 30 वर्ष 7 माह 29 दिन के बराबर उम्र लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ ने 15 जून 1998 को पूर्ण किया है। 26 अक्टुबर 2000 को दिपावली तथा मुसलमानो का ज्योति पर्व ”मेराजुन्नबी“ की एकता। 17 नवम्बर 2000 को लियो (सिंह) राशि की ओर से उल्कापात, 13 दिसम्बर को जेमिनी (मिथुन) राशि की ओर से उल्कापात भी अलग घटना है।
खगोल व ज्योतिष विज्ञान के अनुसार उपरोक्त घटनायें युग की समाप्ति और भगवान के अवतरण के समय का सूचक होती हैं। वर्तमान कलियुग की आयु 4,32,000 वर्ष मानी गयी है। जिसका प्रारम्भ 18 फरवरी 3102 ई0 पू0 माना जाता है। सर्वज्ञपीठम् कालीमठ, वाराणसी के स्वामी ब्रह्मानन्द नाथ सरस्वती के अनुसार ग्रहण से उत्पादित पुण्य से कलियुग  का 10,000 वर्ष आयु कम हो जाता है। (देखें- ”अमर उजाला“ इलाहाबाद संस्करण, दिनांक- 11-08-1999 पूर्ण सूर्यग्रहण के अवसर पर प्रकाशित) और 821 वर्ष कलियुग का शेष रहने पर कल्कि अवतार का अवतरण माना गया है। इस प्रकार कलियुग का व्यतीत कुल वर्ष 5102 वर्ष हुआ और यदि कल्कि अवतार अभी होता है तो कलियुग के कुल आयु 4,32,000 में से 5102$821 वर्ष घटकर 4,26,071 वर्ष ग्रहण द्वारा उत्पादित पुण्य से समाप्त हो जाने चाहिए। जिसके लिए 43 ग्रहण की आवश्यकता है। खगोल वैज्ञानिकों का ऐसा अनुमान है कि वर्ष में सूर्यग्रहण की स्थिति 2 से 5 बार तक आती है। कलियुग के व्यतीत वर्ष 5102 वर्षों में क्या 43 ग्रहण नहीं आये होंगे? जबकि 20 मार्च 2015 तक 14 सूर्यग्रहण अभी होंगे। यदि यह माना जाय तो ग्रहण से उत्पन्न पुण्य सिर्फ भारत में ही होता है तो क्या 5102 वर्षों के दौरान भारत में 43 ग्रहण नहीं हुये होंगे ? जबकि चन्द्रग्रहण से उत्पादित पुण्य से कलियुग की आयु कम होना अलग है। इस प्रकार देखने पर कलियुग की आयु लगभग समाप्त हो चुकी है। 
16 जुलाई 2000 गुरुपूर्णिमा के दिन पूर्ण चन्द्रग्रहण और 5 जुलाई 2001 को अंश चन्द्रग्रहण गुरुओं के लिए प्रकाशमय पूर्णिमा नहीं बल्कि अन्धकारमय अमावस्या था। क्योंकि एक ओर यह पूर्ण चन्द्रग्रहण 13 अगस्त 1859 के बाद हुआ जो अब यह सन् 3000 के बाद ही होगा तो गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर ही हुआ। जो मात्र व्यष्टि गुरुओं के भरमार का प्राकृतिक रुप से विरोध का सूचक था। गुरु के सम्बन्ध में स्वामी विवेकानन्द जी कहते हैं- ”हम गुरु के बिना कोई ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते। अब बात यह है कि यदि मनुष्य, देवता अथवा कोई स्वर्गदूत हमारे गुरु हो, तो वे भी तो ससीम हैं, फिर उनसे पहले उनके गुरु कौन थे ? हमें मजबूर होकर यह चरम सिद्धान्त स्थिर करना ही होगा कि एक ऐसे गुरु हैं जो काल के द्वारा सीमाबद्ध या अविच्छिन्न नहीं हैं। उन्हीं अनन्त ज्ञान सम्पन्न गुरु को, जिनका आदि भी नहीं और अन्त भी नहीं, ईश्वर कहते हैं। (राजयोग, रामकृष्ण मिशन, पृष्ठ-134)
वर्तमान समय में व्यक्ति (व्यष्टि) के गुरुओं की भरमार है परन्तु समाज (समष्टि) के गुरु का पूर्ण अभाव है। वह वहीं है जो वर्तमान और भविष्य की वैश्विक आवश्यकता- वर्तमान व्यवस्थानुसार विश्व-शान्ति-एकता-स्थिरता-विकास-सुरक्षा के लिए प्रबन्ध का माडल दे सकें, साथ ही पूर्ण मानव, स्वस्थ समाज, स्वस्थ लोकतन्त्र और स्वस्थ उद्योग की प्राप्ति का आधारशिला रख फल रुप में विश्वव्यापी पूर्ण एकात्म करें। वर्तमान समय और कुछ भी नहीं अनन्तज्ञान सम्पन्न गुरु निष्कलंक कल्कि अवतार का ही समय है जिसका रुप समष्टि गुरु का ही रुप है। उसका समस्त कार्य उपरोक्त सार्वाधिक खगोलीय घटनाओं की अवधि में ही सम्पन्न हुआ है। जिसके सम्बन्ध में सन् 1996 में ही हालैण्ड निवासी भविष्यवक्ता मि0 क्राइसे ने स्पष्ट कहा था कि- ”मैं भारत में एक महापुरुष को स्पष्ट रुप से देख रहा हूँ जो विश्व के लिए योजनाएँं बना रहा है। “ भारतीय आध्यात्म के अनुसार भी पूर्ण ब्रह्मावतार पूर्ण सत्व गुण रूप श्रीराम तथा पूर्ण विष्णु अवतार पूर्ण रज गुण रूप श्रीकृष्ण हो चुके हैं। अभी जो शेष थे वह हैं- पूर्ण शिव-शंकर अवतार पूर्ण तम गुण रूप। यहीं अन्तिम निष्कलंक कल्कि अवतार है। शिवगुरु है, कल्याण स्वरुप हैं और जब तक इनका आगमन नहीं हुआ था तब तक नेता, वर्तमान व्यष्टि गुरु, चिन्तक इत्यादि का भारत और विश्व का कल्याण कर देने का प्रयत्न निष्फल, भ्रमात्मक और समय गवाने वाला ही था। हमें  शिव-शंकर के पूर्ण प्रेरक पूर्णावतार के रुप में व्यक्त लव कुश सिंह ”विश्वमानव“ द्वारा व्यक्त कर्मों पर चिन्तन और समर्पण करना चाहिए और समर्पण करना ही पड़ेगा।



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